प्रयोजनमूलक हिंदी नोट्स 5 th सेमेस्टर {बी.ए.}

                                                                        इकाई - 1

प्रेस विज्ञप्ति - प्रेस विज्ञप्ति (Press release) वह प्राथमिक तरीका है जिससे आप अपनी कंपनी के समाचारों का मीडिया में संचार कर सकते हैं। संवाददाता, संपादक और निर्माता आमतौर पर नए और असामान्य उत्पादों, कंपनी रूझानों, सुझावों और संकेतों और दूसरी प्रगति के समाचारों के लिए विज्ञप्तियों पर निर्भर होते हैं। वास्तव में, ज्यादातर बातें जो समाचार पत्रों, पत्रिकाओं या व्यापार प्रकाशनों में पढ़ते हैं, रेडियो पर सुनते हैं या टेलीविजन पर देखते हैं, वे प्रेस विज्ञप्ति के रूप में उत्पन्न होती हैं। औसत संपादक हर सप्ताह सैकड़ों प्रेस विज्ञप्तियां प्राप्त करते हैं, जिनमें से ज्यादातर का अंत "फाइल" कर देने के रूप में होता  है|

सरकार की नीतियों एवम निर्णयों को प्रचारित एवम प्रसारित करने के लिय प्रेस नोट या प्रेस विज्ञप्ति का तरीका प्रयोग में लाया जाता  है | प्रेस नोट की अपेक्षा प्रेस विज्ञप्ति ओपचारिक और सवेदनशील होती है अर्थात जरा से शाब्दिक परिवर्तन में भी अर्थ का अनर्थ हो सकता है इसलिए प्रेस विज्ञप्ति को सम्पादक प्रकाशित करने के लिय बाध्य होता है |
विशेषताये-
(1) सरकारी प्रेस विज्ञप्ति ओपचारिक होती है |
(2) प्रेस नोट को पत्रकार छोटा या बड़ा सकता है
(3) प्रेस विज्ञप्ति के प्रकाशनार्थ सामग्री अपरिवर्तनीय होती है , किन्तु , किन्तु प्रेस नोट में सम्पादक परिवर्तन संशोधन क्र सकता है |
(4) प्रेस विज्ञप्ति में लेखन तिथि का उल्लेख होता है
(5) इसमे सम्भोधन और स्वनिर्देश नही होते है |
प्रेस विज्ञप्ति फुल विडियो >
https://www.youtube.com/watch?v=RMDJMl1hkrc
  प्रेस note प्रेस विज्ञप्ति पत्र लेखन की विशेषता>
https://www.youtube.com/watch?v=elAh-a5U2P4&pbjreload=10
https://www.youtube.com/watch?v=LSLO1sSqKIs
प्रतिवेदन - 
प्रतिवेदन (Report)की परिभाषा-
भूत अथवा वर्तमान की विशेष घटना, प्रसंग या विषय के प्रमुख कार्यो के क्रमबद्ध और संक्षिप्त विवरण को 'प्रतिवेदन' कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- वह लिखित सामग्री, जो किसी घटना, कार्य-योजना, समारोह आदि के बारे में प्रत्यक्ष देखकर या छानबीन करके तैयार की गई हो, प्रतिवेदन या रिपोर्ट कहलाती है।
यह अतिसंक्षिप्त; किन्तु काफी सारगर्भित रचना होती है, जिसे पढ़कर या सुनकर उस घटना या अन्य कार्यवाई के बारे में वस्तुपरक जानकारी मिल जाती है। इससे किसी कार्य की स्थिति और प्रगति की सूचना मिलती है।
प्रतिवेदन लिखने के लिए निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
(1) प्रतिवेदन संक्षिप्त हो।
(2) घटना या किसी कार्रवाई की मुख्य बातें प्रतिवेदन में अवश्य लिखी जानी चाहिए।
(3) इसकी भाषा सरल और शैली सुस्पष्ट हो।
(4) विवरण क्रमिक रूप से हो।
(5) पुनरुक्ति दोष नहीं हो यानी एक ही बात को बार-बार भिन्न-भिन्न रूपों में नहीं लिखना चाहिए।
(6) इसके लिए एक सटीक शीर्षक जरूर हो।
प्रतिवेदन के निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(1) प्रतिवेदन में किसी घटना या प्रसंग की मुख्य-मुख्य बातें लिखी जाती हैं।
(2) प्रतिवेदन में बातें एक क्रम में लिखी जाती हैं। सारी बातें सिलसिलेवार लिखी होती हैं।
(3) प्रतिवेदन संक्षेप में लिखा जाता है। बातें विस्तार में नहीं, संक्षेप में लिखी जाती हैं।
(4) प्रतिवेदन ऐसा हो, जिसकी सारी बातें सरल और स्पष्ट हों; उनको समझने में सिरदर्द न हो। उनका एक ही अर्थ और निष्कर्ष हो। स्पष्टता एक अच्छे प्रतिवेदन की बड़ी विशेषता होती है।
(5) प्रतिवेदन सच्ची बातों का विवरण होता है। इसमें पक्षपात, कल्पना और भावना के लिए स्थान नहीं है।
(6) प्रतिवेदन में लेखक या प्रतिवेदक की प्रतिक्रिया या धारणा व्यक्त नहीं की जाती। उसमें ऐसी कोई बात न कही जाय, जिससे भम्र पैदा हो।
(7) प्रतिवेदन की भाषा साहित्यिक नहीं होती। यह सरल और रोचक होती है।
(8) प्रतिवेदन किसी घटना या विषय की साफ और सजीव तस्वीर सुनने या पढ़नेवाले के मन पर खींच देता है।
प्रतिवेदन का उद्देश्य- प्रतिवेदन का उद्देश्य बीते हुए समय के विशेष अनुभवों का संक्षिप्त संग्रह करना है ताकि आगे किसी तरह की भूल या भम्र न होने पाये। प्रतिवेदन में उसी कठोर सत्य की चर्चा रहती है, जिसका अच्छा या बुरा अनुभव हुआ है। प्रतिवेदन का दूसरा लक्ष्य भूतकाल को वर्तमान से जोड़ना भी है।
भूत की भूल से लाभ उठाकर वर्तमान को सुधारना उसका मुख्य प्रयोजन है। किंतु, प्रतिवेदन डायरी या दैंनंदिनी नहीं है। प्रतिवेदन में यथार्थ की तस्वीर रहती है और डायरी में यथार्थ के साथ लेखक की भावना, कल्पना और प्रतिक्रिया भी व्यक्त होती है। दोनों में यह स्पष्ट भेद है।
प्रतिवेदन के प्रकार-
मनुष्य की जीवन बहुरंगी है। उसमें अनेक घटनाएँ नित्य घटती रहती हैं और अच्छे-बुरे कार्य होते रहते हैं। प्रतिवेदन में सभी प्रकार के प्रसंगों और कार्यो को स्थान दिया जाता है। सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी समय-समय किसी कार्य या घटना का प्रतिवेदन अपने से बड़े अफसर को देते रहते हैं। समाचारपत्रों के संवाददाता भी प्रधान संपादक को प्रतिवेदन लिखकर भेजते हैं।
प्रतिवेदन के तीन प्रकार
(1) व्यक्तिगत प्रतिवेदन
(2) संगठनात्मक प्रतिवेदन
(3) विवरणात्मक प्रतिवेदन
(1) व्यक्तिगत प्रतिवेदन- इस प्रकार के प्रतिवेदन में व्यक्ति अपने जीवन के किसी संबंध में अथवा विद्यार्थी-जीवन पर प्रतिवेदन लिख सकता है। इसमें व्यक्तिगत बातों का उल्लेख अधिक रहता है। यह प्रतिवेदन कभी-कभी डायरी का भी रूप ले लेता है। यह प्रतिवेदन का आदर्श रूप नहीं है।
(2) संगठनात्मक प्रतिवेदन- इस प्रकार के प्रतिवेदन में किसी संस्था, सभा, बैठक इत्यादि का विवरण दिया जाता है। यहाँ प्रतिवेदक अपने बारे में कुछ न कहकर सारी बातें संगठन या संस्था के संबंध में लिखता है। यह प्रतिवेदन मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक भी हो सकता है।
(3) विवरणात्मक प्रतिवेदन- इस प्रकार के प्रतिवेदन में किसी मेले, यात्रा, पिकनिक, सभा, रैली इत्यादि का विवरण तैयार किया जाता है। प्रतिवेदक को यहाँ बड़ी ईमानदारी से विषय का यथार्थ विवरण देना पड़ता है।

इकाई 2 
सम्प्रेषण से आशय , प्रक्रति एवम क्षेत्र-
सम्प्रेषण का अर्थ? सम्प्रेषण क्या है?
सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच मौखिक, लिखित, सांकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचार एवं सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण हेतु सन्देश का होना आवश्यक है। सम्प्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (सन्देश प्राप्तकर्ता) होता है। सम्प्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब सन्देश मिल जाता है और उसकी स्वीकृति या प्रत्युत्तर दिया जाता है।
सम्प्रेषण के प्रकार-
सम्प्रेषण मौखिक, लिखित या गैर शाब्दिक हो सकता है।
1. मौखिक सम्प्रेषण-
जब कोर्इ संदेश मौखिक अर्थात मुख से बोलकर भेजा जाता है तो उसे मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं। यह भाषण, मीटिंग, सामुहिक परिचर्चा, सम्मेलन, टेलीफोन पर बातचीत, रेडियो द्वारा संदेश भेजना आदि हो सकते हैं। यह सम्प्रेषण का प्रभावी एवं सस्ता तरीका है। यह आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के सम्प्रेषण के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। मौखिक सम्प्रेषण की सबसे बड़ी कमी है कि इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका कोर्इ प्रमाण नहीं होता।
2. लिखित सम्प्रेषण-
जब संदेश को लिखे गये शब्दों में भेजा जाता है, जैसे पत्र, टेलीग्राम, मेमो, सकर्लूर, नाेिटस, रिपोटर् आदि, ताे इसे लिखित सम्प्रेषण कहते है। इसकी आवश्यकता पड़ने पर पुष्टि की जा सकती है। सामान्यत: लिखित संदेश भेजते समय व्यक्ति संदेश के सम्बन्ध में सावधान रहता है। यह औपचारिक होता है। इसमें अपनापन नहीं होता तथा गोपनीयता को बनाए रखना भी कठिन होता है।
3. गैर-शाब्दिक सम्प्रेषण-
ऐसा सम्प्रेषण जिसमें शब्दों का प्रयोग नहीं होता है गैर शाब्दिक सम्प्रेषण कहलाता है। जब आप कोर्इ तस्वीर, ग्राफ, प्रतीक, आकृति इत्यादि देखते हैं। आपको उनमें प्रदर्शित संदेश प्राप्त हो जाता है। यह सभी दृश्य सम्प्रेषण हैं। घन्टी, सीटी, बज़र, बिगुल ऐसे ही उपकरण हैं जिनके माध्यम से हम अपना संदेश भेज सकते हैं। इस प्रकार की आवाजें ‘श्रुति’ कहलाती है। इसी प्रकार से शारीरिक मुद्राओं जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों का उपयोग किया गया हो, उनके द्वारा भी हम संप्रेषण करते हैं। उन्है। हम संकेतों द्वारा संप्रेषण कहते हैं। हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलाम करते हैं। हाथ मिलाना, सिर को हिलाना, चेहरे पर क्रोध के भाव लाना, राष्ट्र गान के समय सावधान की अवस्था में रहना आदि यह सभी संकेत के माध्यम से सम्प्रेषण के उदाहरण हैं। जब अध्यापक विद्याथ्री की पीठ पर थपकी देता है तो इसे उसके कार्य की सराहना माना जाता है तथा इससे विद्याथ्री और अच्छा कार्य करने के लिए पे्ररित होता है।
सम्प्रेषण का महत्व-
1. व्यवसाय को प्रोत्साहन - सम्प्रेषण से कम समय मे ज्यादा काम सम्भव हो गया है और घरेलू एवं विदेशी व्यापार मे व्ृध्दि हुर्इ है। व्यापारी घर बैठे ही सौदे कर सकते है, पूछताछ कर सकते है आदेश दे सकते है व स्वीेकृति भेज सकते है।
2. श्रम में गतिशीलता- सम्प्रेषण के आसान साधनों से दूरी के दुख दर्द कम हो गये है, परिवार व मित्रो से निरन्तर सम्पर्क बनाये रख सकते है। इसीलिए काम धंधे के लिए लोग अब आसानी से दूर जाने लगे है।
3. सामाजीकरण- सम्प्रेषण के विविध साधनों से लोग अपने सगे-सम्बन्धी, मित्रों, परिचितों से नियमित रूप से सन्देशों का आदान -प्रदान करते हैं। इसमे आपसी सम्बन्ध, प्रगाढ़ हुए है और सामायीकरण बढ़ा है।
4. समन्वय एवं नियंन्त्रण- व्यावसायिक गृहों एवं सरकार के कार्यालय अलग अलग स्थानों पर स्थित होते है और एक ही भवन के अन्दर कर्इ विभाग हो सकते हैं। उनके बीच प्रभावी सम्प्रेषण उनके कार्यो में समन्वय स्थापित करने तथा उन पर नियन्त्रण रखने में सहायक होता है।
5. कार्य निष्पादन में कुशलता- प्रभावी सम्प्रेषण का कार्य निष्पादन में श्रेष्ठता लाने में बडा़ योगदान होता है। व्यावसायिक इकार्इ में नियमित सम्प्रेषण के कारण दूसरों से ऐच्छिक सहयोग प्राप्त होता है क्योंकि वह विचार एवं निर्देशो को भली-भांति समझते हैं।
6. पेशेवर लोगों के लिए सहायक- वकील अलग-अलग कोर्ट में जाते हैं जो दूर दूर स्थित होते हैं। डाक्टर कर्इ नर्सिग होम में जाते है और चार्टर्ड एकाउन्टेंट कम्पनियों के कार्यालयों में जातें हैं। मोबाइल टेलीफोन से उन्हें अपना कार्यक्रम निर्धारित करने में तथा उसमे आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने में सहायता मिलती हैं।
7. आपातकाल में सहायक- यदि कोर्इ दुर्द्यटना घटित हो जाए या आग लग जाए तो आधुनिक संचार माध्यमों की सहायता से तुरन्त सहायता मांगी जा सकती है या सहायता प्राप्त हो सकती हैं।
8. समुद्री तथा हवार्इ/वायु यातायात- संचार माध्यम समुद्री जहाज तथा हवार्इजहाज की सुरक्षित यात्रा के लिए बहुत सहायक रहते हैं क्योंकि इनका मार्गदर्शन एक स्थान विशेष पर स्थित नियन्त्रण कक्ष से प्राप्त संप्रेषण द्वारा किया जाता है।
9. शिक्षा का प्रसार- शिक्षा सम्बन्धी अनेक कार्यक्रम रेडियो द्वारा प्रसारित किये जाते हैं और टेलीविजन पर दिखाए जाते है। यह प्रणाली व्यक्तिगत अध्ययन के स्थान पर विद्यार्थियों कों शिक्षा देने की एक अधिक लोकप्रिय प्रणाली बन चुकी हैं।
१०. विज्ञापन- रेडियो तथा टेलीविजन जन साधारण से संवाद के साधन हैं तथा व्यावसायिक फर्मो के लिए विज्ञापन के महत्वपूर्ण माध्यम है क्योंकि इनके व्दारा बड़ी संख्या में लोगों तक पहुचा जा सकता हैं।
सम्प्रेषण को प्रभावित करने वाले तत्व :-  सम्प्रेषण को अनेक तत्व प्रभावित करते  है इन सभी तत्वों को निम्नांकित चार भागो मैं बाँट  सकते है -----
1. संप्रेषक से सम्बंधित तत्व :- बहुत से ऐसे तत्व या कारक संप्रेषक से सम्बंधित  होते है जो संप्रेषक प्रभावित करता है ---
a. संप्रेषक का भाषा  ज्ञान  तथा भाषागत दछतायें
b. संप्रेषक की मानसिक एवं शारीरिक स्तिथि
c. संप्रेषक का बातावरण तथा बातावरन में स्वम की स्तिथि  का आंकलन
2.  सम्प्रेषी से सम्बंधित तत्व :-                                           
a सम्प्रेषी  की संप्रेषक से दूरी जितनी कम होगी सम्प्रेषण उतना ही अच्छा होगा
b. सम्प्रेषि का भाषा ज्ञान श्रवन  एवं दृश्य सकती
c. सम्प्रेषी की मानसिक, भावनात्मक तथा शारीरिक स्तिथि
d. सम्प्रेषी  को प्राप्त  अभिप्रेरणा , रूचि , आवश्यकतायें
3 माध्यम  :-
a. माध्यम की किस्म
b.माध्यम का स्तर 
4.सूचना एवं संकेत :-
a. शाब्दिक
b. स्पष्टता
c. सरलता
d. मौलिकता
सम्प्रेषण ( Communication)
सम्प्रेषण का अर्थ है किसी विचार या सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित करने वाले द्वारा भेजना तथा प्राप्त करने वाले द्वारा प्राप्त करना.
तत्व-
सम्प्रेषण सत्रोत : व्यक्ति समूह जिसमे विचारो का आदान परदान होता है.
सम्प्रेषण सामग्री: सम्प्रेषणकरता के विचार अथवा भाव
सम्प्रेषण का माध्यम : शाव्दिक और अशाव्दिक
पराप्तकर्ता : विचारों को प्राप्त करने वाला.
सम्प्रेषण के उद्देश्य ( Aims of Communication)-

समूह को संवोधित करने के कौशल का विकास.
समूह को विषय वस्तु से स्पष्ट या सरल ढंग से परिचित करना.
पाठ को वोधगम्य बनाना.
शात्रों को अभिप्रेरित करना.
उपयोगी लेखन के कौशल का विकास करना.
इन्टरनेट तथा वेबसाइट के उपयोग का बोध करवाना.
सम्प्रेषण मे सहायक तत्व-
सम्प्रेषण को प्रभावशाली बनाने के लिए उपयुक्त सम्प्रेषण परिसथितियों तथा बातावरण का महत्वपूरण स्थान होता है.
उधार्नार्थ ; पर्याप्त रौशनी का होना; उचित मात्रा मे फर्नीचर ; गर्मी से वचने के लिए पंखें ; साथ ही उचित मात्रा मे मनोविज्ञानिक वातावरण होना आवश्यक है. अध्यापक का प्रभावी व्यक्तित्व तथा शिक्षण शैली भी सम्प्रेषण को प्रभावित करती है.
 सम्प्रेषण मे बाधक तत्व -
प्रेश्न्कर्ता कमियाँ; रूचि का आभाव; उत्साह मे कमी; प्रवल सम्प्रेषण बिधि का अभाव;
सम्प्रेषण सामग्री मे कमियाँ;
सम्प्रेषण माध्यम की कमियाँ.
सम्प्रेषण प्राप्तिकर्ता सम्वन्धी कमियाँ.
वातावरण सम्वन्धी कमियाँ.
 Main Elements Of Communication Process (सम्प्रेषण प्रक्रिया के मूल तत्व )
सम्प्रेषण प्रक्रिया के मूल तत्व निम्नलिखित है |
(1) सन्देश प्रेषक – संचार प्रक्रिया में यह वह व्यक्ति होता है जो अपने विचार या सन्देश भेजने के लिए दुसरे व्यक्ति से सम्पर्क बनता है विचारो की अभिव्यक्ति लिखकर बोलकर , कार्यवाही करके अथवा चित्र बनाकर की जाती है |
(2)  विचार की स्रष्टि –  सम्प्रेषण का प्रारंभ किसी ऐसे विचार के पैदा होने से होता है जो संप्रेषित किया जाना है
| सन्देश प्रेषक को अपने विचार की पूरी जानकारी एंव स्पष्टता होनी चाइये अर्थात उसे साफ –साफ समझ लेना चाइये की वः क्या कहना चहाता है ?
(3)  सन्देश बधता – विचार की सार्ष्टि हो जाने पर सन्देश प्रेषक इसे कुछ स्पष्ट वाक्य शब्दों अथवा संकेतो में बंधता है मानसिक अव्धार्नाओ को व्यक्त करने के लिए भाषा बहुत ही म्हव्त्पूर्ण होती है , सन्देश के शब्दों सन्देश ले जाने वाले माध्यम पर भी निर्भर करते है | अत: सन्देश प्रेषक को यह स्पष्ट क्र लेना चाइये की सन्देश लिखकर ,बोलकर या संकेतो से कैसे दिया जायेगा  ? संदेश्बधता में सरीर की भाषा भी प्रयुक्त की जाती है वाणी , हावभाव , मुख मुर्दा , हाथ आदि के माध्यम से सन्देश को कुत्बध किया जाता है | व्यवसाय में आजकल कई संदेशो को कंप्यूटर भाषा के द्वारा भी लिपिबद्ध किया जाता है
(4) सन्देश प्रेषण – संचार प्रकृत्या के द्वारा सन्देश को दुसरे पक्ष तक पहुचाया जाता है इसके लिए सन्देश प्रेषक ऐसे तरीके या साधन या माध्यम का प्रयोग करता है जिसके द्वारा सन्देश , प्राप्तकर्ता को प्रेषित किया जा सके | सन्देश देने के लिए विभिन्न माध्यम हो सकते है जैसे व्यक्तिगत वार्तालाप , पत्र सुचना पत्र , परिपत्र , टेलीफ़ोन आदि | सन्देश भेजने के लिए माध्यम का चुनाव बहुत ही सव्धानिपुरव करना पड़ता है क्योंकि इन माध्यमो का संदेशो के प्रेषण में अलग अलग प्रभाव पड़ता है सन्देश भेजते समय सन्देश देने वाले व्यक्ति को सम्प्रेषण के वतावातन का भी ध्यान रखना पड़ता है | सन्देश भेजते समय सन्देश देने वाले व्यक्ति को सम्प्रेषण के वातावरण का भी ध्यान रखना पड़ता है सन्देश देने वाले व्यक्ति को यह भी तय करना पड़ता हहै की वह अपना सन्देश सीधे रूप से देने चायेगा या अप्रत्यक्ष रूप से | इसे यह भी चयन करना पड़ता है की सन्देश लिखित रूप में दिया जाये अथवा मौखिक रूप में दिया जाये | मौखिक सम्प्रेषण के अंतर्गत आमने – सामने टेलीफ़ोन – सेमिनार , विचार – गोष्टी आदि शामिल करते है जबकि लिखित सम्प्रेषण के लियेल पत्र व्यवहार , इंटरनेट ई-मेल का प्रयोग करते है | इसी प्रकार संकेत भाषा शर्व्य अथवा द्रश्य के लिए टेलीविजन रेडियो , विज्ञपन पटल बोर्ड , चार्ट आदि का प्रयोग आदि करते है
(5)   सन्देश प्राप्ति :- सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूर्ण होती है जब सन्देश प्राप्तकर्ता द्वारा सन्देश प्राप्त कर लिया जाता है प्रत्येक सन्देश का केंद्र बिंदु सन्देश प्रापक ही होता है अत: यह  आवश्यक है की सम्प्रेषण सन्देश प्राप्तकर्ता को ध्यान में रखकर ही किया जाये |
(6) सन्देश वचन – सन्देश प्राप्तकर्ता , सन्देश प्राप्त होने के पश्चात् उसकी व्याख्या करता है | वह शब्दों , संदेतो , चित्रों अदि के द्वारा उसका अर्थ स्पष्ट करता है | अत: प्राप्त सन्देश को अपनी समझ के अनुसार अर्थ देना , इसके विचार को ग्रहण करना , सन्देश को समझना तथा यदि कोई शक हो तो उसे दूर करना ही सन्देश वाचन कहलाता है सन्देश प्राप्तकर्ता , भेजे गये सन्देश का अनुवाद अथवा अर्थ लगाकर प्रेषक द्वारा भेजे गये अंतर्भाव को निश्चित अर्थ में समझता है |
(7) क्रियान्वयन – सन्देश प्रापक, सन्देश के अर्थ को समझने के पश्चात् अपनी समझ के अनुसार इस सन्देश पर कार्यवाही करता है | सन्देश प्रेषक के लिए यह जानना जरुरी होता है की सन्देश प्रप्क्र्ता पर इस सन्देश की क्या प्रतिक्रिया हुई है अर्थात प्राप्तकर्ता ने सन्देश को उसी अर्थ में समझ है या नही जिस अर्थ में वह अपना सन्देश प्राप्तकर्ता को देना चहाता था |
(8) प्रतिपुष्टि – जब सन्देश प्राप्त करने वाला सन्देश के उत्तर में अपनी प्रतिक्रिया या भावना व्यक्त कर देता है | तब उसे प्रतिपुष्टि खा जाता है सम्प्रेषण का उदेश्य केवल सन्देश पहुचना ही नही होता बल्कि सन्देश के अनुसार कोई कार्यवाही करना अथवा हो रही कार्यवाही को रोकना होता है | सम्प्रेषण तभी प्रभावी माना जाता है जब प्रतिपुष्टि , प्रेषक की आशा के अनुरूप हो | प्रतिपुष्टि से प्रेषक को यह संकेत भी मिलता हिया की सम्प्रेषण में कही कोई त्रुटी तो नही रह गई | व्यावसायिक सम्प्रेषण में प्रतिपुष्टि अत्यंत आवश्यक होती है |
जनसंचार का अर्थ
जनसंचार शब्द 'जन' और 'सचांर' इन दो शब्दों से मिलकर बना है | इसको 'मास मीडिया' भी कहा जाता है |  'जन ' से आशय जनता , लोक या पब्लिक से है| 'संचार ' का अर्थ मनुष्य का एक-दुसरे के साथ व्यव्हार,भाईचारा तथा एक-दुसरे को संदेश प्रेषण से है|
किसी भाव ,विचार संदेश या जानकारी को एक दुसरे तक पहुँचाने की सामूहिक प्रक्रिया को हम जनसंचार कहते है|'
जन संचार वर्तमान समय में सबसे ताकतवर व समकालीन संचार संसाधन है | इसमे संचार प्रक्रिया केसभी तत्व है दूसरी बात इस संसाधन में सूचनाये एक विशाल जनसमूह के लिये प्रेषित की जाती है|
जनसंचार की प्रमुख विशेषतायें- 
(1)  जनसंचार की प्रमुख विशेषता यह है की यह साधारण जनता के लिये होता है| अर्थात यह किसी विशेष वर्ग के लिये नही होता है |
(2)  जनसंचार अपना संदेश तीव्रतम गति से गंतव्य तक पहुँचता है | समाचर -पत्र, रेडियो तथा टेलीविजन के माध्यम से तीव्र गति से कोई भी संदेश जन-सामान्य तक पहुँचाया  जा सकता है |
(3)  युध्द, आपातकाल , दुर्घटना आदि के समय जनसंचार की मुख्य भूमिका होती है |
(4) जनसंचार की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमे जन सामान्य की प्रतिक्रिया का पता चल जाता है
(5) जनसंचार द्वारा विभिन्न विषयो पर आधुनिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है ताकि अनेक समस्यायों  का हल तुरंत खोजा जा सकता है |
(6) जनसंचार एकतरफा (एकांगी मार्ग ) होता है |
जनसंचार माध्यमो का वर्गीकरण -
जनसंचार के माध्यमो को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है -
(1) शब्द संचार माध्यम - मुद्रण (प्रिंट) समाचार -पत्र -पत्रिकाये, पुस्तके आदि |
(2) श्रव्य संचार माध्यम - रेडियो, आडियो , केसेट ,टेपरिकॉर्डर आदि |
(3) द्रश्य -श्रव्य संचार माध्यम - दूरदर्शन, विडियो तथा फिल्म आदि|
इकाई 3 
समूह चर्चा -
एक विषय या चर्चा करने के लिए एक विषय और चर्चा करने के लिए समूह 6-10 उम्मीदवारों द्वारा किया गया है। कभी-कभी, समूह सदस्यों को शुरू करने से पहले उनके स्टैंड की योजना के लिए पांच मिनट दिए जाते हैं। आम तौर पर जीडी अवधि 15-30 मिनट है। यह उम्मीदवार की क्षमता और उनके कौशल को स्क्रीन करने के लिए एक बहुत ही उपयोगी उपकरण है। भारत में कई कंपनियों के साक्षात्कार के दौरान समूह चर्चाएं लोकप्रिय मूल्यांकन उपकरण हैं। इसका एक तरीका भारतीय संगठन द्वारा उपयोग किया जाता है ताकि पता लगाया जा सके कि क्या उम्मीदवारों में कुछ व्यक्तित्व लक्षण हैं या वे अपने सदस्य में होना चाहते हैं।
समूह चर्चा परिणाम और चयन एक विषय विशेषज्ञों और प्राधिकरण द्वारा तथ्यों के आधार पर चर्चा के अंत में मूल्यांकन। समूह चर्चा गतिविधियां मूल्यांकनकर्ताओं को इनमें से किसी भी पहलू पर उम्मीदवार को समझने में मदद करती हैं:
व्यक्तित्व कौशल
पारस्परिक कौशल
नेतृत्व कौशल
प्रेरक कौशल
टीम बिल्डिंग कौशल
विश्लेषणात्मक / तार्किक कौशल
सोचने की क्षमता
पहल
आग्रहिता
रचनात्मकता
संचार कौशल
क्यों GDS आमतौर पर लागू किया जाता है-
                    संस्थान अपने साक्षात्कार में विज्ञापन उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में समूह चर्चा के दौर का आयोजन करते हैं। संस्थान या संगठन लिखित परीक्षा और पीआई के माध्यम से उम्मीदवार तकनीकी और वैचारिक कौशल का मूल्यांकन कर सकते हैं। जीडी आपको एक व्यक्ति के रूप में जानने में मदद करता है और अपने संगठन में कितनी अच्छी तरह फिट होगा इसका पता लगाने में मदद करता है। जीडी का मूल्यांकन करता है कि आप एक टीम के एक भाग के रूप में कैसे काम कर सकते हैं। एक प्रबंधक के रूप में या किसी संगठन के सदस्य के रूप में आप सर्वश्रेष्ठ टीमों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और टीम वर्क के लिए हमेशा काम करेंगे। इसलिए आप अपने चयन के लिए एक टीम में कैसे सहभागिता करते हैं, यह महत्वपूर्ण मानदंड बन जाता है। यही कारण है कि प्रबंधन संस्थानों में जीडी को चयन प्रक्रिया के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
समूह Dissussion के प्रकार
जीडीएस हो सकता है विषय के आधार पर or मामले के आधार पर.
1। विषय आधारित जीडी 'एस
विषय आधारित जीडी को 3 में वर्गीकृत किया जा सकता है, ये नीचे दिए गए हैं:
तथ्यात्मक विषय
विवादास्पद विषयों
सार विषय
तथ्यात्मक विषय:
वास्तविक विषय व्यावहारिक चीजों के संबंध में हैं, जो एक सामान्य व्यक्ति अपने दिन-प्रतिदिन के जीवनकाल में सराहना करता है। आम तौर पर ये सामान्यतः सामाजिक-आर्थिक विषय क्षेत्रों के बारे में होते हैं। ये वर्तमान हो सकते हैं, i। इलेक्ट्रोनिक। वे हाल ही में खबरों के आसपास हो सकते हैं, या अवधि से अनबाउंड हो सकते हैं चर्चा के लिए एक वास्तविक विषय एक उम्मीदवार को यह साबित करने में सक्षम हो जाता है कि वह अपने पर्यावरण की सराहना करता है और उसके प्रति संवेदनशील होता है।
मामले: शिक्षा बीमा देश में वृद्ध में भारत, राज्य में भारत, पर्यटन नीति।
विवादास्पद विषयों:-
विवादास्पद विषयों वे हैं जो संपूर्ण प्रकृति में तर्कसंगत हैं वे विवाद उत्पन्न करना चाहते हैं। जहां भी इन विषयों को चर्चा के लिए मिलते हैं, वहां जीडीएस में, शोर स्तर सामान्य रूप से ऊंचा होता है, वहां संभवत: उड़ने वाला माहौल हो सकता है। इस तरह से एक विषय देने के पीछे इस दृष्टिकोण को देखते हुए यह देखना है कि व्यक्तिगत और भावनात्मक बिना बिना तर्कसंगत तर्क के बावजूद तर्कसंगत रूप से, अपने गुस्से को चेक में रखते हुए चुनाव में कितना परिपक्वता दिख रही है।
उदाहरण: आरक्षण हटा दिया जाना चाहिए, महिलाओं बेहतर प्रबंधकों बनाने
सार मुद्दे:-
सार विषयों अमूर्त बिंदुओं के बारे में कर रहे हैं। इन विषयों में आमतौर पर अक्सर चर्चा से संबंधित नहीं दिया जाता है, लेकिन उनकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। विषयों की इन प्रकार रचनात्मकता के अलावा अपने वर्तमान पार्श्व सोच का परीक्षण करें।
उदाहरण: एक निश्चित रूप से एक वर्णमाला है, लिटिल स्टार, टेलीफोन नंबर 10 ट्विंकल ट्विंकल |
[नोट :-GD मतलब समूह चर्चा]
साक्षात्कार-
दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच बातचीत एवं विचारों का आदान-प्रदान साक्षात्कार (Interview) कहलाता है। इसमें एक या कई व्यक्ति किसी एक व्यक्ति से प्रश्न पूछते हैं और वह व्यक्ति इन प्रश्नों के जवाब देता है या इन पर अपनी राय व्यक्त करता है।
साक्षात्कार, साहित्य की एक विधा भी है।
प्रकार-
अलग-अलग उद्देश्यों से साक्षात्कार लिये जाते हैं। उद्देश्य के अनुसार साक्षात्कार की प्रक्रिया भी अलग-अलग होती है। साक्षात्कार बहुत तर्ह के हो सकते हैं-
कार्मिक चयन के लिये साक्षात्कार
टेलीविजन साक्षात्कार
दूरभाष साक्षात्कार
सूचना साक्षात्कार - किसी प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिये
लंच साक्षात्कार (lunch interview)
केस साक्षात्कार (case interview)
पजल साक्षात्कार (puzzle interview)
स्ट्रेस साक्षात्कार (Stress Interview) - इसका उद्देश्य यह देखना है कि दबाव की स्थिति में आपका व्यवहार कैसा रहता है।
संगोष्ठी -
संगोष्ठी (conference) लोगों का सम्मिलन (meeting) है जिसमें किसी विषय पर विचार-विमर्श एवं विचार विनिमय किया जाता है।
फीचर लेखन -
 बी.बी.सी. में फीचर शब्द डॉक्यूमेंट्री के लिय प्रयुक्त होता है इसका अपना एक इतिहास है  साठ वर्ष पूर्व  बी.बी.सी. में फीचर नाम से रचनाये नही होती थी इसके नाटक विभाग ने रेडियो - टेकनिक बारे में नये-नये प्रयोग किये गये उसे विशेष अवसरों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करने पड़ते थे इन कार्यक्रमों को सामान्य कार्यक्रमों से प्रमुखता मिलती है लोग इन्हे फीचर्ड प्रोग्राम कहते थे | धीरे धीरे इसके अंतर्गत सभी रचनाओ का समावेश होने लगा जो रेडियो - टेकनिक की दिशा में नये नये प्रयोग के लिये की जाती है नये प्रकार की रचने जिन्हें डॉक्यूमेंट्री कहते थे अंत्यंत आकर्षक थी इसी दिशा में और प्रयोग होते रहे इससे इनकी टेकनिक विकसित होती गयी | अब बी.बी.सी. में नाटक विभाग से अलग इनके लिय अलग विभाग है | फीचर की यही प्रष्ठभूमि है | अंग्रेजी में यथातथ्य घटनाओ और सूचनाओ पर आधारित नाटकीय रचनाओ को फीचर कहते है | इसी फीचर को हिंदी में रूपक कहा जाता है |
एक अच्छे फीचर के गुण तथा लेखन प्रक्रिया -
 किसी भी नीरस परन्तु वास्तविक विषय को रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है परन्तु उसे प्रस्तुत करने के ढंग में मनोरंजकता एवम सजीयता होनी चाहिये , जिससे पाठक में उब पैदा न हो इसमे सतर्कता की आवश्यकता होती है | इसमे यदि लम्बाई और गम्भीरता आ गयी तो यह प्रभावहीन हो जाता है | फ्हिचार में सर्ग्र्भित६अ होनी चाहिये | इसी के आधार पर फीचर रोचकता और प्रभावशीलता से अपनी को प्रस्तुत करने में सक्षम होता है | नाटक में नाटकीयता का तत्व अधिक होता  है | वार्ता में सपाट वयानी होती है परन्तु इसमे नाटकीयता और सपाटबयानी होती है परन्तु इसमे नाटकीयता और सपाटबयानी दोनों का समन्वय होता है नाटक में कल्पना की आधिकता होती है परन्तु यह तथ्यों पर आधरित होता है | रेडियो रूपक किसी भी विषय पर आधारित हो सकता है
प्रष्ठ सज्जा / प्रस्तुतिकरण-
वर्तमान मे समाचार पत्रों की बिक्री अथवा प्रसार संख्या में अभिवृधि में प्रष्ठ-सज्जा अथवा ले आउट की प्रमुख भूमिका को नजरंदाज नही किया जा सकता है | समाचार पत्र में सलग्न प्रत्येक प्रष्ठ का विन्यास यानि साज सज्जा करना एक कला है समाचार - पत्र में विभिन्न विषयों के प्रथक प्रथक प्रष्ठ होते है |
परिशिष्टो का सोंदर्य पुरे समाचार पत्र से अलग और विशिष्ट रहता है यदि कोई प्रष्ठ पाठको को आकर्षित नही करता है तो यह पत्र के उप - सम्पादक की जिममेदारी अर्थात कमी मणि जाती है  | समाचार -पत्रों के उद्भव  काल में इस बात का विशेष महत्व न था | परन्तु आज सॉज सज्जा समाचार पत्रो का विशेष अंग है | इसलिए आधिकांश समाचार पत्रों में इस कार्य हेतु प्रथक से नियुक्तिया भी होने लगी है आज पाठक समाचार पत्र की शक्ल , आवरण देखकर ही उसे पढने को हाथ बढाता है | इसलिए समाचार पत्र जब विक्रय हेतु बाजार में आता है तो उसका रूप एक उत्पादित वस्तु का हो जाता है अत; सम्पूर्ण समाचार पत्र के  प्रत्येक प्रष्ठ में आकर्षक और आमन्त्रण पूर्ण समाचार होना चाहिये |प्रत्येक प्रष्ठ का मेकअप सही ढंग से होना चाहिये |शीर्षकों और कलेवरों के लिय किस टाइप परिवार का उपयोग होगा | समाचारों के शेषांग किस प्रष्ठ पर दिए जायेंगे | दुसरे प्रष्ठ पर विज्ञापन दिया जायेगा या नही , विज्ञापन का आकार कितना रहेगा उसके बद प्रस्थ पर कित्ती जगह शेष रहेगी आदि सभी चीजो का ध्यान पेजमेकर या दिजैनेर को रखना होता है इस कार्य में उपसंपादक , सम्पादक और समाचार सम्पादक तथा डिजाईनर सामूहिक परामर्श करते रहते है | इस कार्य में आज विज्ञापन प्रभारी की भूमिका भी अहम हो जाती है |
प्रष्ठ विन्यास में आज आधुनिकता पढ़ती का प्रयोग होने लगा है | कम्पोजिटर्स और प्रूफेरीडर आज कंप्यूटर पर ही समाचार को अंतिम रूप दे देते है | सुंदर,साफ टाइप आज के समाचार - पत्र का रूप ही नही निखारते वरन समाचार पाठक भी सहजता से पढ़ पता है | आधुनिक मशीनों से स्वच्छ साफ - सुथरे , सुस्पस्ट अक्षरो वाले समाचार पत्रों की आज भरमार है |
संपादन कला -
संपादन एक व्यापक शब्द है। अकसर हम संपादन का अर्थ समाचारों के संपादन से लेते हैं। पर संपादन अपने संपूर्ण अर्थों में पत्रकारिता के उस काम का सम्मिलित नाम है‚ जिसकी लंबी प्रक्रिया के बाद कोई समाचार‚ लेख‚ फीचर‚ साक्षात्कार आदि प्रकाशन और प्रसारण की स्थिति में पहुंचते हैं। संपादन कला को ठीक से समझने के लिए जरूरी है कि यह जान लिया जाए कि यह क्या नहीं है:
1. लिखित कॉपी को काट-छांट कर छोटा कर देना
2. लिखित कॉपी की भाषा बदल देना
3. लिखित कॉपी को संपूर्णतः रूपांतरित कर देना
4. लिखित कॉपी को हेडिंग व सबहेडिंग से सुसज्जित कर देना
5. लिखित कॉपी को अलंकृत कर देना
6. लिखित कॉपी को सरल बना देना या उसे कोई खास स्वरूप दे देना
7. लिखित कॉपी में तथ्यों को ठीक करना या तथ्यों का मूल्यांकन कर उन्हें घटा-बढ़ा देना
8. लिखित कॉपी को पाठकों के बौद्धिक या समझ के स्तर के अनुरूप बना देना
काई 4 -
प्रसारण-'

श्रब्य और/अथवा विडियो संकेतों को एक स्थान से सभी दिशाओं में, या किसी एक दिशा में फैलाना प्रसारण (Broadcasting) कहलाता है। दूरस्थ स्थानों पर इन संकेतों को उपयुक्त विधि से ग्रहण किया जाता है एवं आवश्यक परिवर्तनों (प्रवर्धन, डीमोडुलेशन आदि) के बाद कोई श्रब्य या विडियो आदि प्राप्त होता है।
परम्परागत टीवी प्रसारण, हवा में विद्यमान टीवी सिगनलों को टीवी एन्टेना की सहायता से सीधे ग्रहण करके किया जाता है। इसके विपरीत केबल टीवी, टीवी के कार्यक्रम दिखाने का ऐसा तन्त्र है जिसमें सबसे पहले दूरदर्शन के सिगनल को किसी केन्द्रीय स्थान पर (जिसे हेड-एन्ड कहते हैं) ग्रहण करके उसे समाक्षीय केबल या प्रकाशीय फाइबर (फाईबर आपटिक्स) की सहायता से ग्राहकों के टीवी से जोड़ दिया जाता है। केबल में सिगनल डालने के पहले उसे हेडएन्ड पर निम्नलिखित प्रक्रियाओं से गुजरन्ना पड़ता है:
संकेत को बड़ी-बड़ी डिश-एंटेना की सहायता से ग्रहण किया जाता है,
परिवर्धित किया जाता है;
डी-कोड किया जाता है;
मिश्रित किया जाता है।
केबल टीवी को सामुदायिक टीवी (कम्युनिटी टीवी या CATV) नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें हर टीवी स्वतन्त्र रूप से संकेत ग्रहण नहीं करता बल्कि यह एक सामुदायिक सेवा के रूप में किसी गाँव, कस्बे या एक बड़े शहर के बड़े भाग को सेवा देती है।
केबल टीवी के साथ एफ एम रेडियो, उच्च-गति इंटरनेट, दूरभाष एवं अन्य गैर-दूरदर्शनीय सेवायें भी प्रदान की जा सकती हैं।
रेडियो की कार्यक्रम की भाषा या लेखन में निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए:-
1. रेडियो की भाषा सरल और आम बोलचाल की होनी चाहिए।
2. वाक्य संक्षिप्त हों अर्थात् छोटे-छोटे हों।
3. एक वाक्य में एक ही प्रकार की सूचना निहित हो।
4. सूचनाओं को सरल, सबल और स्पष्ट वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
5. लेखन में पूरे नाम का ही प्रयोग करना चाहिए। नाम और पदों को बार-बार लिखने से प्रवाह नष्ट हो जाता है।
6. लेखन के समय केवल उन्हीं शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जो उस जगह आवश्यक हों। जितने कम शब्दों का प्रयोग किया जाए, उतना अच्छा है।
7. रेडियो समाचार में दिनांक, माह या वर्ष का नाम देने की अपेक्षा जहां तक हो सके आज, कला, परसों अथवा सोमवार, मंगलवार आदि दिनों के अनुसार शब्दों को प्रयोग करना चाहिए।
8. रेडियो की भाषा में मोटी-मोटी गिनती की जगह संक्षिप्त अंकों में बात कहीं जानी चाहिए। जैसे 2 लाख 49 हजार टन को लगभगग अढ़ाई लाख।
9. रेडियो में कई शब्दों को प्रयोग नहीं किया जाता। जैसे- निम्नांकित, उपयुक्र्त, पूर्वोक्त, क्रमशः, यथा आदि।
10. रेडियो में चूंकि समय सीमित होता है इसलिए समय की सीमा में रहते हुए महत्वपूर्ण बातों को प्रसारित करना चाहिए।
11. रेडियो श्रव्य माध्यम है इसलिए यह उचित माना जाता है कि उसमें दृश्यात्मक शब्दों का प्रयोग न किया जाए। कहने का तात्पर्य है कि अवलोकनीय, दर्शनीय आदि शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
12. रेडियो में नकारात्मक भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। बैठक आज नहीं होगी की जगह बैठक स्थगित हो गई कहना उपयुक्त माना जाता है।
इकाई 5 -
पत्रकारिता का संक्षिप्त  इतिहास -
भारतवर्ष में पत्रकारिता के प्रवेश के साथ ही हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत हुई। भारत में छापेखाने पहले ही आ चुके थे। बंबई में सन् 1674 में एक प्रेस की स्थापना हुई और मद्रास में सन् 1772 में एक प्रेस स्थापित हो चुका था। उस समय भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों के सामने अनेक समस्याएँ थीं, जबकि वे नया ज्ञान अपने पाठकों को देना चाहते थे।
उस काल में ज्ञान के साथ-साथ समाज-सुधार की भावना भी उन लोगों में थी। सामाजिक सुधारों को लेकर नए और पुराने विचारवालों में अंतर भी होते थे, जिसके कारण नए-नए पत्र निकाले गए। हिंदी के प्रारंभिक संपादकों के सामने एक समस्या यह भी थी कि भाषा शुद्ध हो और सबको सुलभ हो।
भारतीय भाषाओं के पत्र-पत्रिकाओं का उत्तरोतर विकास होता गया; परंतु कुछ पत्रों को ब्रिटिश सरकार की ज्यादतियों और दमन के आगे घुटने टेकने पड़े और वे बंद हो गए। हिंदी पत्रकारिता उन संपादकों एवं साहित्यिकों की ऋणी है, जिन्होंने इसे आगे बढ़ाने और उसमें निखार लाने में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया।
वर्तमान परिद्रश्य 
स्वाधीनता प्राप्ति में हिंदी पत्रकारिता का ऐतिहासिक योगदान है | उस समय हिंदी पत्रकारिता की मूल द्रष्टि राष्टीय उत्थान तथा हिंदी भाषा के उनयन की थी | इस प्रकार हिंदी पत्रकारिता का उदय 30 मई , 1826 'उदन्त मार्तण्ड' सं. एवं प्रकाशक पंडित युगलकिशोर शुक्ल द्वारा हुआ माना जाता है| एस उदय से राष्टीय उन्नति , सामाजिक तथा संस्कृतिक नवचेतना की भावना को विस्तार मिला |' वास्तव में हिंदी पत्रकारिता का जन्म स्वाभिमान के संचार ,स्वदेश प्रेम के उदय एवं आंग्ल शासन के प्रबल प्रतिरोध हेतु हुआ | स्वन्त्रन्ता -प्राप्ति तक हिंदी पत्रकारिता स्वन्त्रन्ता आन्दोलन के प्रति समर्पित रही लेकिन अआजादी के बाद हिंदी पत्रकारिता बहुआमी हो गयी किन्तु किन्तु यह पूरी तरह जनोन्मुखी नही हो पायी| पत्रकारिता ने आजादी के बाद उतनी मुस्तेदी और सतर्कता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वाह नही किया , जितनी सजगता और कर्तव्यपरायणता से उसे करना चाहिये था | इसलिए पत्रकारिता 'मिशन ' और 'पेशा' बन गया |
इतना सब कुछ सत्य होते हुये भी प्रेस आर्थिक संकटों से जूझ-जूझकर दम तोड़ देती है | मजबूरन उन्हें सरकार की क्रपा पर निर्भर रहना पड़ता है , यही कारण है की पत्रकारिता सत्ता की मुखापेक्षी बन गयी है | सरकारी दर पर कागज उपलब्ध होने से राहत महसूस करने वाला प्रेस मालिक प्रेस की स्वन्त्रन्ता का पहला प्रतिरोधक बनता है | बड़े और स्थायी विज्ञापनदाता तो प्रेस का मनमाना प्रयोग करते है, | लेकिन बिना आर्थिक सम्बल के पत्रकारिता दो कदम भी नही चल सकती , इस तथ्य को  भी नजरअंदाज नही किया जा सकता | यही कारण  है कि पत्र सरकारी प्रवक्ता बन गये है |
समाचार-पत्र जनता के सेवक है | वे न अपने मालिको के प्रति उत्तरदायी है न की सरकार या आधिकारियों के समक्ष सिर झुकाने को बाध्य | वे जनता के प्रति जवाबदेह है , जनता के हितो के रक्षक है |
  वर्तमान पत्रकारिता अपने उदेश्य से भटकती नजर आ रही है , इसके भटकाव में उसके समक्ष आर्थिक विवशता है सरकार की पत्रकारिता के प्रति उपेक्षा और सोतेले व्यव्हार की नीति भी इसके लिय कम जिम्मेदार नही | वर्तमान में जहा जन सामान्य से लेकर विशिष्टजन तक प्रेस-मीडिया  पर निर्भर है , वहीं शने: शने: इसकी निष्पक्षता , पारदर्शिता और स्वन्त्रन्ता पर उंगलिया उठने लगी है | सतालोलुप्ता इस क्षेत्र में भी प्रवेश क्र गयी है | स्वार्थ के पथ पर चलने वाले स्वयम से आधिक उन्न्त किसी को न होने देने के लिय , सबको मसलना चाहते है | इसमे आम जनता ही पिसती - दबती  और कुचलती है, लेकिन  'ये तो पब्लिक है, सब जानती है |' इसके रूप को पुनः अपने पसंद का बनाने में सक्षम होगी , ऐसे आशा है |
 समाचार लेखन-
समाचारों से ही समाचार -पत्र बनता है, जहाँ समाचार-पत्र में अन्य पाठ्य - सामग्री , टिप्पणी ,विज्ञापन , सम्पादक के नाम पत्र ,साहित्यक परिशिष्ट इत्यादि होते है , वहाँ समाचार तो निसंदेह समाचार -पत्र की आत्मा है | समाचार को कथा की भाँती प्रवाहपूर्ण होना चाइये| किसी घटना को सरल ढंग से प्रस्तुत करना एक बात है परन्तु उसे कहानी बनाकर प्रस्तुत करना कोशल का काम है एक पत्रकार का कथन है की कहानी भी कम से कम सत्य प्रतीत होनी चाइये, सुसंगत होनी चाइये, अच्छे ढंग से कही जानी चाहिये |
समाचार लेखन एक कला है | इसलिए समाचार लिखते समय निम्नलिखित बातो का धयान रखा जाना चाहिए
(1) सत्यता - पत्रकार  या समाचार लेखक को चाइये की वः जो भी समाचार प्रस्तुत करे या लिखे वः सत्यता के अत्यधिक निकट हो , सत्यता के आभाव में समाचार अपनी विश्वसनीयता खो देता है
(2) रोचकता - समाचार को इस ढंग से लिखा जाना चाहिये की समाचार को पढने वाले के मन में रोचकता रहे व समाचार को पढने के लिये प्रेरित हो और समाचार में उसका मन रम जाये |
(3) प्रवाहपूर्णता -समाचार में कहानी की भाँती प्रवाह गुण होना चाहिये | पाठक समाचार के प्रथम वाक्य को पढ़ते ही उसके साथ बहना प्रारम्भ क्र दे | समाचार का प्रवाह नदी के प्रवाह की भाँती होना चाहिये |
(4) तटस्थता- समाचार लेखन में वस्तु निष्ठता या तटस्थता का गुण होना चाइये अर्थात समाचार लेखक को अपनी पसंद न पसंद का प्रदर्शन नही करना चाहिये | उसे व्यक्तिगत धारणाओं से दूर रहकर समाचार लिखना चाहिये | इस सन्दर्भ में सी .पी. स्काँट  लिखते है - ''समाचार संग्रह सामाचार - पत्र का प्रथम कर्तव्य है | समाचार भले ही उसकी भावना पर चोट करता हो , किन्तु उसे समाचार को दूषित नही होने देना चाहिये | सत्य को थेश नही पहुचनी चाहिये | त्तथ्य पवित्र है, व्याख्या स्वन्त्रन्त है |''
(5) उपदेश का आभाव - पाठक अच्छे समाचार पढना चाहता है किन्तु उसे समाचार के नाम पर भाषणबाजी और उपदेश से चिढ होती है | इसलिय उसे कठोर से कठोर सत्य को भी प्रिय ढंग से प्रस्तुत करना चाहिये |
(6) स्पष्टता-   समाचार स्पष्ट वाक्यों पर लिखा जाना चाहिये |  लम्बे लम्बे और जटिल तथा दुरूह वाक्यों से बचना चाहिये | समाचार ऐसी भाषा में होना चाइये की पढ़ते ही स्पस्ट हो जाये |
(7) सरल भाषा - समाचार लेखक को भाषा पर प्रवीण होना चाहिये | यदि उसकी भाषा में प्रवाह है तो  वह समाचार को स्पष्ट और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करता जाता है इसके विपरीत यदि भाषा कठिन हो तो पाठक उसे पढ़ते हुये खीझ जाता है और समाचार पढना छोड़ देता है इसिलिय समाचार लेखन में सहज सरल भाषा का प्रयोग  करना चाहिये |
(8) पथ प्रदर्शन -समाचार लेखक अपने पाठको का मित्र ही नही बल्कि पथ- प्रदर्शक भी होता है | वह अपने पाठको के ज्ञान में वर्धि करता है इसीलिए समाचार लेखक को सदेव्ब सावधान रहना चाहिये |
मिडिया लेखन
मिडिया  को परिभाषित करने  का प्रयास विभिन्न विद्वानों ने किया है |जब किसी यांत्रिक प्रणाली के माध्यम से संदेश को कई गुणा बढाकर , उस संदेश को एक बड़ी संख्या में लोगो तक पहुँचाया जाता हें तो उसे 'मिडिया ' या 'जनसंचार ' नाम दिया जाता हें |
स्थूल रूप से जनसंचार माध्यमो को तीन रूपों में बांटा जा सकता हें -
(1) शब्द  संचार माध्यम -  इसके अंतर्गत  समाचार -पत्र , पत्रिकाये एवं पुस्तके आती हें |
(2 ) श्रव्य संचार माध्यम -  रेडियो , केसिट , टेप रिकार्डर आदि |
(3) व्द्श्य संचार माध्यम -इस वर्ग में दूरदर्शन , वीडियो , फिल्मे , कम्प्यूटर आदि आते हें

प्रिंट मीडिया -मुद्रण प्रणाली के आबिष्कार से पहले हाथ से लिख कर किसी कृति को तेयार किया जाता थी | उसे सुरक्षित रखने के लिये विशेष प्रयत्न करने पड़ते थे | किसी दूसरी  प्रति की आवश्यकता पड़ने पर फिर लिखना पड़ता था | जितनी प्रतिया उतनी ही बार उस कृति को लिया जाता था | इस तरह समय भीं अधिक लगता था ओर श्रम भी बहुत करना पड़ता था 

              अब मुद्रण प्रणाली में आश्चर्यजनक विकास हो जाने से गुणात्मक परिवर्तन हो गया हें | मुद्रण की इस सुविधा के कारण आफसेट , फोटो  कम्पोजिंग ओरे लेजर प्रिंटिंग ने मुद्रण के क्षेत्र में क्रांति ला दी हें | छपाई की इस सुविधा के कारण समाचार -पत्रों का प्रकाशन भी आसन कर दिया हें | समाचार पत्रों ने लोगो के विचारो को मुखर बना दिया हें |समाचार -पत्रों में विभिन्न घटनाओ की विस्तृत रिपोर्ट देकर उसके सामाजिक , आर्थिक , संस्कृतिक और राजनीतिक पक्षो का भी विश्लेषण किया ,इससे समाज में एक नई जाग्रति आई | ये समाचार - पत्रों के कारण ही संभव हुई |

इलेक्ट्रानिक मीडिया - रेडियो , टी . वी . , सेटेलाईट टी . वी .,केबल टी . वी . ,केसेट आदि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अंतर्गत आते हें | ये सभी माध्यम संदेश को पल भर में पूरे विश्व में पहुचा देते हें | द्रश्य - श्रव्य - सचित्र होने के कारण इसका प्रभाव भी अधिक होता हें प्रिंट मीडिया संदेश को वर्षो तक जीवित रख सकता हें | परन्तु इनका संदेश कुछ ही पलो का होता हें विशेष रूप से रेडिओ का | टी . वी . का संदेश संचित होने से कुछ अधिक समय तक स्मृति में रह सकता हें |

भारत में रेडियो  का विस्तार -
इलेक्ट्रानिक मीडिया के सबसे सरल और सुलभ और सस्ते साधन के रूप में रेडियो की पहचान आज भी वेसी ही हें , जेसे पहले हुआ करती थी | रेडियो इलेक्ट्रानिक मीडिया का सबसे लोकप्रिय साधन हें |
          1916 से 1920  के मध्य रेडियो का विकास हुआ और अनेक देशो ने रेडियो स्टेशन स्थापित करके प्रसारण आरंभ कर दिया |  भारत में पहला रेडियो स्टेशन एक नीजी क्लब आफ बाम्बे ' व्दारा जून 1923   में स्थापित कर आरम्भ किया गया था | इसके बाद नवम्बर 1923  में  'कलकत्ता रेडियो क्लब ' व्दारा प्रसारण आरम्भ किया गया |

                      आजादी के बाद 1956 -1957 में इसका नाम आकाशवाणी रखा गया |
संचार माध्यम के रूप में रेडियो का महत्व -
 रेडियो को बिना कागज और बिना दुरी का समाचार पत्र कहा जाता है | रेडियो जो  श्रव्य -माध्यम की श्रेणी में आता है , इस जनमाध्यम को पत्रकारिता की द्रष्टि से ' श्रव्य -समाचार -पत्र भी कहते है , क्योकि यह माध्यम समाचारों - सूचनाओ को आकाश में प्रसारित करके सुनाता है यह माध्यम श्रवनेइन्द्रियों के द्वारा सारी दुनिया को श्रोता के निकट ले जाता है और सुदूर निर्गम स्थानों तक  में रहने वाले लाखो करोड़ो लोग बहरी दुनिया से जुड़ जाते है जहा तक मुद्रण माध्यम की पहुच नही है आज निरक्षर , निर्धन और नेत्रहीन जनता के लिये आकाशवाणी वरदान सिद्ध हुई है यह ऐसा सरल तथा सुगम साधन है जिसके द्वारा दूर दूर तक फैले श्रोताओ को पलभर में संदेश प्रसारित किया जाता है |
शिक्षा और सुचना जनसंचार की आत्मा है तो मनोरंजन उसकी संजीवनी है | मनोरंजन ही रेडियो को लोकप्रिय और लोकरंजक बनता है दिन - भर के श्रम से लोटे किसान , मजदुर ,कामगार ,दफ्तरी ,कर्मचारी घर आते ही रेडियो के गीत सुनते हुये आराम महसूस करते है | रेडियो के विविध कार्यक्रमों के बिच गीत - संगीत , नाटक-प्रहसन ,चुटकुले ,अन्ताक्षरी,ज्ञानवानी आदि कार्यक्रम भरपूर मनोरंजन और जीवतंता प्रदान करते है |
                                                                               

                                                                        THE END



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